भारत सरकार ने इस हफ्ते एक बड़ा कदम उठाया है — Department for Promotion of Industry and Internal Trade (DPIIT) ने **50 से ज़्यादा कंपनियों** के साथ करार (MoU) किया है। इस सूची में प्रमुख नाम हैं Yes Bank, Paytm, Hero MotoCorp, Zepto और अन्य। :contentReference[oaicite:6]{index=6}
यह सिर्फ एक औपचारिक करार नहीं है — बल्कि इसके पीछे है एक रणनीति: भारत को मैन्युफैक्चरिंग, इनोवेशन और स्टार्टअप्स का हब बनाना। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि इस “DPIIT कंपनी करार” का मतलब क्या है, सरकार उनसे क्या-चाहती है, कंपनियों को क्या करना होगा, और इससे आम लोगों-स्टार्टअप्स-मैन्युफैक्चररों को क्या फायदा हो सकता है।
1. करार क्यों और किसने किये? (“DPIIT कंपनी करार” पृष्ठभूमि)
DPIIT ने पिछले कुछ वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने, स्टार्टअप्स को सहयोग देने और “मेक इन इंडिया” की दिशा में गति लाने का काम तेज किया है।
हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, DPIIT ने अब तक 50+ कंपनियों के साथ MoU किये हैं — जिनमें बड़े कॉर्पोरेट्स, बैंक-फाइनेंस, यूनिकॉर्न्स और ऑटोमोबाइल कंपनियाँ शामिल हैं।
“So far, the department has inked memorandum of understandings (MoUs) with over 50 firms for this.” — DPIIT अधिकारी
इनमें उदाहरण के लिए Yes Bank, Paytm, Hero MotoCorp, Zepto, boAt, HDFC Capital Advisors, Kotak Mahindra Bank और अन्य शामिल हैं।
सरकार का उद्देश्य स्पष्ट है — बड़े उद्योग-खातों (corporates) को स्टार्टअप्स-मैन्युफैक्चरिंग इनोवेशन इकाई से जोड़ना ताकि टैलेंट, टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को मिलाकर एक नया इनोवेशन-इकोसिस्टम बने।
2. DPIIT कंपनियों से क्या-क्या सहयोग चाहता है?
इस “DPIIT कंपनी करार” की मुख्य मांगें और अपेक्षाएँ इस प्रकार हैं:
- मैन्युफैक्चरिंग इनक्यूबेटर्स सेटअप: कंपनियाँ अपने परिसर में स्टार्टअप्स के लिए इनक्यूबेशन सेंटर्स खोलें, प्रोटोटाइप-मैन्युफैक्चरिंग सुविधा दें।
- स्टार्टअप्स-कॉर्पोरेट कॉलेबोरेशन: बड़े कंपनियों द्वारा स्टार्टअप्स को मेंटरशिप, बाजार-पहुँच, पायलट प्रोजेक्ट्स (PoC) आदि दिए जाएँ।
- कैपिटल/फाइनेंस एक्सेस: बैंक-फाइनेंस कंपनियों को स्टार्टअप्स के लिए आसान ऋण, फंडिंग, बैंकिंग सॉल्यूशन्स देने में भूमिका निभानी है। उदाहरण: Yes Bank, Kotak Mahindra Bank।
- टेक्नोलॉजी-अपग्रेडेशन और लोकल सोर्सिंग: कंपनियाँ मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी, लोकल सप्लायर नेटवर्क से जुड़ने, ‘मेक इन इंडिया’ चेन को मजबूत करने में योगदान करें।
- स्केल-अप सहयोग: स्टार्टअप्स को स्केल-अप करने के लिए प्लग-अँड-प्ले मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी देना, लागत को कम करना।
संक्षिप्त में — DPIIT चाहती है कि बड़े-कंपनियाँ सिर्फ निवेश नहीं करें बल्कि स्टार्टअप्स-मैन्युफैक्चरिंग-इनोवेशन के एजेंट बनें।
3. क्यों यह महत्वपूर्ण है? (वित्त-प्रेरणा एवं रणनीति)
भारत की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग और इनोवेशन को बढ़ावा देना आज समय की मांग है। नीचे कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:
- काम की नौकरियाँ: मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार सृजन का सम्भावना बहुत है।
- लागत प्रतिस्पर्धा: अगर भारत मैन्युफैक्चरिंग में मजबूत हुआ तो आयात-निर्भरता कम होगी।
- स्टार्टअप स्केल-अप: नवाचार के लिए सिर्फ आइडिया नहीं बल्कि मैन्युफैक्चरिंग-बेस्ड पूरक सुविधाएं चाहिए होती है।
- ग्लोबल वैल्यू चेन: भारत को वैश्विक उत्पादन एवं निर्यात चेन में जगह बनानी है।
इनमें DPIIT की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह नीति-निर्धारण एवं सुविधा-प्रदाता दोनों का काम करती है।
4. कंपनियों को क्या करना होगा? (रोल-आउट विमर्श)
करार करने वाली कंपनियों के लिए जो प्रमुख जिम्मेदारियाँ होंगी, वो इस प्रकार हैं:
- अपना इनक्यूबेशन/मैन्युफैक्चरिंग पार्क खोलना या साझेदारी करना।
- स्टार्टअप्स के लिए मेंटरशिप-प्रोग्राम, पायलट प्रोजेक्ट्स देना।
- फाइनेंस-सहायता देना या भुगतान-समय में सहूलियत देना।
- टेक्नोलॉजी-ट्रांसफर, डिजाइन-कैपबिलिटी, लोकल सप्लायर नेटवर्क बढ़ाना।
- DPIIT द्वारा निर्धारित लक्ष्य-मेट्रिक्स के अधीन रहने की व्यवस्था देना — जैसे कितने स्टार्टअप्स स्केल-अप करेंगे, कितनी संख्या मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स होंगी।
उदाहरण के लिए, Hero MotoCorp ने कहा है कि वह मैन्युफैक्चरिंग स्टार्टअप्स के लिए 6-महीने का एक्सेलरेशन प्रोग्राम चलाएगा।
5. स्टार्टअप्स-मैन्युफैक्चरर्स को क्या मिलेगा?
इस पहल से स्टार्टअप्स और छोटे-मध्यम मैन्युफैक्चरर्स को कई लाभ मिल सकते हैं —
- मूल्यों (capex) कम होंगे क्योंकि बड़ी कंपनियों की प्लांट-फैसिलिटी शेयर होगी।
- अपने उत्पाद को जल्दी प्रोटोटाइप-मैन्युफैक्चर कर सकेंगे।
- बैंक-वित्त-और-मार्केट-एक्सेस आसान होगी।
- मीडिया और मार्केटिंग सपोर्ट मिलेगी क्योंकि बड़े कंपनी का नाम जुड़ा होगा।
- ‘मेक इन इंडिया’ चेन में भागीदारी से सरकारी जीएसटी-प्रोत्साहन आदि मिल सकते हैं।
6. क्या चुनौतियाँ हो सकती हैं? (रिस्क फेक्टर)
हालाँकि पहल बहुत सकारात्मक है, पर कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें नजरअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए:
- बड़े-कंपनियों की हिस्सेदारी कम होना: अगर कंपनियाँ केवल नाम के लिए जुड़ी हों और असली एक्टिविटी न करें।
- छोटे स्टार्टअप्स के लिए पहुँच-समस्याएँ: टेक्नोलॉजी-अवर-स्केल्ड-मॉडल्स वाले स्टार्टअप्स को ही ज्यादा फायदा मिलना।
- रोल-आउट में देरी: हम जानते हैं कि नीति-से-एक्शन में समय लगता है। भारत-जैसे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर-प्रोविजन चुनौती हो सकती है।
- मापन-मेट्रिक्स का अभाव: अगर सफलताएँ मैप नहीं होंगी तो पहल औपचारिक बन सकती है।
7. आगे की राह… क्या उम्मीदें हैं?
यह पहल महज़ एक शुरुआत है — अब यह महत्वपूर्ण होगा कि इस “DPIIT कंपनी करार” की **क्रियान्वयन गति** तेज हो और परिणाम दिखें।
कुछ संभावित अगला कदम हो सकते हैं:
- हर कंपनी के लिए साल-वार रिपोर्टिंग करना कि कितना स्टार्टअप्स को सपोर्ट मिला।
- मान-निर्देश (benchmark) तय करना कि एक कंपनी कितने स्टार्टअप्स को चुनें, कितनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स खोलें।
- राज्यों के साथ समन्वय बढ़ाना — मैन्युफैक्चरिंग पार्क, टेक-हब्स, लॉजिस्टिक कॉर्पस।
- छोटे शहरों-गाँवों की मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां बढ़ाना ताकि रोजगार और विकास वहाँ तक पहुंचे।
अगर यह योजना सफल हो जाती है, तो आने वाले 5-10 वर्षों में भारत में “मैन्युफैक्चरिंग+इननोवेशन हब” बनने की दिशा में एक बड़ी छलांग लग सकती है।
8. निष्कर्ष
तो, “DPIIT कंपनी करार” महज एक क्लीन-शीट पर हस्ताक्षर भर नहीं है — यह भारत की बड़ी तस्वीर का हिस्सा है जहाँ स्टार्टअप, मैन्युफैक्चरिंग, बैंक-फाइनेंस और बड़ी कंपनियाँ मिलकर काम करेंगी।
बड़े नामों जैसे Yes Bank, Paytm, Hero MotoCorp के जुड़ने से यह संकेत मिलता है कि इस पहल को गंभीरता से लिया जा रहा है। लेकिन असली काम यह है कि **इन करारों को जमीन पर उतारा जाए**, स्टार्टअप्स को वास्तविक समर्थन मिले, और मैन्युफैक्चरिंग-इनफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो।
अगर आप स्टार्टअप हैं, मैन्युफैक्चरर हैं या आप उद्योग-से जुड़े हैं, तो यह मौका आपके लिए बहुत बड़ा है — **समय रहते तैयार हो जाइए** क्योंकि बदलाव आने वाला है।
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