Allahabad High Court शुक्रवार की सुनवाई में उन अर्जियों पर बहस हुई जिनमें ईदगाह को अतिक्रमण बताकर मंदिर पक्ष को भूमि-कब्ज़ा सौंपने की मांग है। अदालत ने रिकॉर्ड, पक्षकारों के लिखित प्रत्युत्तर और पूर्ववर्ती आदेशों के आलोक में आगे की कार्यवाही का रोडमैप निर्धारित करने की दिशा में कदम बढ़ाया।
नोट: सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 और फिर जनवरी 2025 में शाही ईदगाह परिसर के कोर्ट-निगरानी सर्वे पर रोक बढ़ाई थी, किंतु हाईकोर्ट को मुख्य सिविल सूटों की सुनवाई जारी रखने की छूट दी थी—इसलिए आज जैसी सुनवाइयों का महत्व बना हुआ है।
याचिकाएँ/प्रार्थना-पत्र: कौन-कौन-सी प्रमुख माँगें?
मंदिर पक्ष की प्रमुख माँगें
- ईदगाह परिसर को अतिक्रमण घोषित कर भूमि का कब्ज़ा मंदिर/उपासक पक्ष को देना।
- विवादित क्षेत्र में पूजा-अर्चना/धार्मिक अधिकारों के संरक्षण हेतु स्थायी निषेधाज्ञा।
- ऐतिहासिक/पुरालेखीय साक्ष्यों की न्यायालय-पर्यवेक्षित जाँच (जहाँ लागू)।
मस्जिद/वक्फ़ पक्ष की प्रमुख दलीलें
- यथास्थिति का आग्रह; Places of Worship Act, 1991 व वक्फ़ कानून का हवाला।
- संबंधित याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में लंबित; समानांतर कार्यवाही से परहेज।
- पूर्व-समझौते/दस्तावेज़ों की वैधता और दीवानी सीमाबद्धता (Limitation) के तर्क।
इन प्रार्थनाओं का प्रत्यक्ष असर भूमि-अधिकार, धार्मिक-उपासना व सार्वजनिक-कानून की सीमाओं पर पड़ता है। इसलिए अदालत चरणबद्ध तरीके से—प्राथमिक मुद्दों, दस्तावेज़ी सामग्री और वाद-रखरखाव (maintainability) के विमर्श—सबको एक धुरी पर रखती है।
कानूनी परिप्रेक्ष्य: किन प्रावधानों के इर्द-गिर्द बहस?
Places of Worship Act, 1991
यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 की स्थिति को संरक्षित करता है। अपवादस्वरूप राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद वाद (अयोध्या) इससे बाहर था। बहस का एक बड़ा हिस्सा इस बात पर केंद्रित रहता है कि क्या वाद का दायरा इस अधिनियम की परिधि में बाधित है या नहीं।
Waqf Act एवं दीवानी प्रक्रिया
वक्फ़ संपत्ति, प्रबंधन तथा दीवानी दायरों पर तर्क आते हैं। साथ में Limitation Act के तहत वाद की देरी/समयसीमा का प्रश्न भी खड़ा होता है—जिसे हाईकोर्ट पहले maintainable मान चुका है (1 अगस्त 2024)।
सर्वे/निरीक्षण पर सर्वोच्च अदालत की रोक
सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट-निगरानी सर्वे पर रोक बरकरार रखी, पर सिविल सूटों की सुनवाई जारी रहने दी—यही कारण है कि लिखित बयान, साक्ष्य-आवेदन और अंतरिम प्रार्थनाएँ निर्णायक बन गई हैं।
कानूनी रूप से अदालत को ऐतिहासिक-दस्तावेज़ीय दावों, धार्मिक-अधिकार तथा सार्वजनिक-व्यवस्था/शांति-व्यवस्था के बीच संतुलन साधना होता है—और यह प्रक्रिया कई चरणों में आगे बढ़ती है।
टाइमलाइन: अब तक की प्रमुख तारीख़ें:Allahabad High Court
- 1 अगस्त 2024: Allahabad High Court ने हिन्दू उपासकों के कई सूटों को maintainable माना—Limitation/Waqf/PoW Act-आधारित बाधाओं को उस स्तर पर अस्वीकार किया गया।
- 17 जनवरी 2024 & 22 जनवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट ने शाही ईदगाह परिसर के कोर्ट-निगरानी सर्वे पर रोक लगाई/बढ़ाई; पर मुख्य सूटों की सुनवाई जारी रखने की अनुमति बनी रही।
- मई–अगस्त 2025: विभिन्न अंतरिम प्रार्थनाओं पर समय/स्थगन; एक प्रार्थना जिसमें “शाही ईदगाह मस्जिद” शब्द के स्थान पर “विवादित संरचना” लिखे जाने की मांग थी, अस्वीकार हुई।
- अक्टूबर 2025: जस्टिस आर.एम.एन. मिश्रा के स्थानांतरण के बाद सुनवाई 7 नवम्बर 2025 को जस्टिस अवनीश सक्सेना के समक्ष सूचीबद्ध हुई।
- 07 नवम्बर 2025 (आज): अतिक्रमण/कब्ज़ा-हस्तांतरण जैसी प्रार्थनाओं पर बहस—आगे की प्रक्रिया के लिए दिशा-निर्देश तय होने की उम्मीद।
यह टाइमलाइन सार्वजनिक रिपोर्टिंग/आदेश-सारांश पर आधारित है; आधिकारिक ऑर्डर-शीट्स ही अंतिम मानक होती हैं।
विश्लेषण: आज की सुनवाई का अर्थ क्या: Allahabad High Court?
आज की कार्यवाही का अर्थ यह है कि भूमि–अधिकार और धार्मिक–उपासना के दावों पर अदालत अगले चरण में ठोस स्पष्टता ला सकती है—क्या प्राथमिक मुद्दे पहले चुनें, क्या साक्ष्य-आवेदनों को समेकित करें, किन प्रार्थनाओं पर तुरंत निर्णय दें और कौन-सी बातें मुख्य वाद के दौरान तय हों।
मंदिर पक्ष के लिए, अतिक्रमण/कब्ज़ा-हस्तांतरण जैसी प्रार्थनाएँ सफलता की राह बन सकती हैं—यदि अदालत को यह प्रतीत होता है कि दस्तावेज़/इतिहास/कानून के पैमाने पर prima facie आधार है। मस्जिद/वक्फ़ पक्ष के लिए, सुप्रीम कोर्ट-लंबित विषयों का हवाला देकर status quo और शांतिपूर्ण स्थिति सुरक्षित रखना रणनीतिक दृष्टि से अहम रहेगा।
आगे क्या: Allahabad High Court
1) मुद्दों का फ़्रेमिंग (Framing of Issues)
कोर्ट पक्षकारों के दावों/प्रतिदावों के आधार पर स्पष्ट मुद्दों का निर्धारण कर सकती है—ताकि साक्ष्य-रिकॉर्डिंग focused रहे।
2) अंतरिम राहत/निषेधाज्ञा
यदि किसी पक्ष ने तात्कालिक संरक्षण माँगा है (यथास्थिति या सीमित अधिकार), तो उस पर अलग आदेश आ सकता है।
3) दस्तावेज़/साक्ष्य-आवेदन
पुरालेख, नक्शे, जीर्णोद्धार/समझौते, राजस्व रिकॉर्ड—इन पर कोर्ट admissibility और प्रासंगिकता के हिसाब से दिशा दे सकती है।
4) सुप्रीम कोर्ट-लंबित मामलों का प्रभाव
यदि उच्चतम न्यायालय किसी संबंधित मुद्दे पर आदेश देता है, तो हाईकोर्ट की प्रक्रिया/समयरेखा उसी अनुरूप समंजित होगी।
FAQs – Allahabad High Court: मथुरा जन्मभूमि–ईदगाह केस
1) आज की सुनवाई किस बारे में थी?
आज उन याचिकाओं पर सुनवाई हुई जिनमें शाही ईदगाह को अतिक्रमण बताकर मंदिर पक्ष को भूमि-कब्ज़ा देने की मांग, साथ ही अन्य सहायक प्रार्थनाएँ शामिल हैं।
2) सुनवाई कौन-सी बेंच में हो रही है?
मामला जस्टिस अवनीश सक्सेना के समक्ष सूचीबद्ध है। इससे पहले जस्टिस आर.एम.एन. मिश्रा के स्थानांतरण के बाद आज की तारीख़ तय हुई थी।
3) क्या सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कोई रोक लगाई है?
हाँ—सर्वे/निरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक बढ़ाई थी; पर हाईकोर्ट में सिविल सूटों की सुनवाई जारी रखने की अनुमति है।
4) क्या हाईकोर्ट ने सूटों को पहले maintainable माना था?
हाँ, 1 अगस्त 2024 को। उस आदेश में Limitation, Waqf Act और Places of Worship Act, 1991-आधारित आपत्तियाँ उस स्तर पर नहीं मानी गईं।
5) आगे की प्रक्रिया क्या हो सकती है?
मुद्दों का निर्धारण, दस्तावेज़/साक्ष्य-आवेदनों पर दिशानिर्देश, और जहाँ जरूरी हो वहाँ सीमित/तात्कालिक अंतरिम आदेश। सुप्रीम कोर्ट-लंबित मामलों का प्रभाव भी बना रहेगा।



