Putin के भारत दौरे पर पश्चिमी देशों का “शोर” क्यों? MEA की नाराज़गी, कूटनीति के संकेत और आगे की कहानी
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4–5 दिसंबर 2025 को भारत की आधिकारिक यात्रा पर आने वाले हैं।
लेकिन इस यात्रा से ठीक पहले एक ऐसा विवाद सामने आया जिसने दिल्ली के कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी।
फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के शीर्ष राजनयिकों ने एक बड़ा op-ed लिखकर रूस की विदेशनीति पर खुले तौर पर सवाल खड़े कर दिए —
और इसकी टाइमिंग ने भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) को नाराज़ कर दिया।
घटनाक्रम: आखिर हुआ क्या?
दिल्ली स्थित तीन प्रमुख पश्चिमी देशों—फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन—के दूतावास प्रमुखों ने मिलकर
एक राष्ट्रीय अखबार में लेख लिखा।
इसमें रूस की नीतियों, खासकर यूक्रेन युद्ध को लेकर, कठोर टिप्पणियाँ की गईं।
यह लेख पुतिन की भारत यात्रा के ठीक पहले प्रकाशित हुआ और भारत ने इसे
“अनुचित समय” व
“अस्वीकार्य कूटनीतिक व्यवहार” बताया।
MEA का कहना था कि किसी राष्ट्र प्रमुख के आगमन से ठीक पहले इस तरह की सार्वजनिक आलोचना
“डिप्लोमैटिक प्रैक्टिस के खिलाफ” है।
कौन थे लेख के लेखक?
इस संयुक्त लेख पर तीन नाम स्पष्ट रूप से दर्ज थे:
- फिलिप एक्करमैन (Philipp Ackermann) — जर्मनी के राजदूत
- थियरी माथू (Thierry Mathou) — फ्रांस के राजदूत
- लिंडी कैमरन (Lindy Cameron) — ब्रिटेन की उच्चायुक्त
तीनों राजनयिकों का Joint Op-ed किसी साधारण बयान की तरह नहीं देखा गया;
बल्कि इसे भारत की स्वायत्त विदेश नीति पर “अप्रत्यक्ष दबाव” की कोशिश माना गया।
भारत को आपत्ति क्यों हुई? — 3 बड़े कारण
- टाइमिंग संदिग्ध:
पुतिन के दौरे से चंद दिन पहले ऐसा लेख प्रकाशित होना
पश्चिम की असहजता का संकेत माना गया।
इससे संदेश जाता है कि पश्चिम इस यात्रा से खुश नहीं है। - कूटनीतिक मर्यादा:
अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल में इस तरह का सार्वजनिक लेख,
वह भी किसी राष्ट्राध्यक्ष के आगमन से पहले,
असामान्य माना जाता है। - भारत-रूस संबंधों की संवेदनशीलता:
रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में भारत-रूस संबंध काफी रणनीतिक हैं।
किसी भी प्रकार की सार्वजनिक आलोचना इन समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।
भारत-रूस संबंध: वर्तमान स्थिति
भारत और रूस दशकों से करीबी रणनीतिक साझेदार रहे हैं।
रक्षा सौदे, ऊर्जा आयात और बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय इनके रिश्ते की रीढ़ हैं।
यूक्रेन युद्ध के बाद भी भारत ने रूस से अपनी ऊर्जा खरीद नहीं रोकी —
बल्कि तेल आयात पहले से अधिक बढ़ा।
यही बात पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन का यह दौरा
“रिश्तों की दोबारा पुष्टि”
और आने वाले वर्षों की रणनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा।
पश्चिम क्यों बेचैन दिख रहा है?
पिछले दो सालों में पश्चिमी देशों ने रूस की अर्थव्यवस्था पर कई प्रतिबंध लगाए हैं।
उनकी कोशिश रही है कि रूस का तेल निर्यात घटे।
लेकिन भारत रूस से दुनिया का सबसे बड़ा तेल खरीदार बनकर उभरा है।
- यूरोप को लगता है कि भारत का यह रुख रूस को आर्थिक राहत देता है।
- भारत और रूस के बीच गहरे संबंध पश्चिमी रणनीति के आड़े आते हैं।
- पुतिन की भारत यात्रा पश्चिम के लिए एक बड़ा भू-राजनीतिक संकेत है।
इसीलिए कुछ विश्लेषक इस पूरे प्रकरण को
“पश्चिमी नाराज़गी का सार्वजनिक प्रदर्शन”
भी कह रहे हैं।
क्या यह सिर्फ शोर है या कोई बड़ा कूटनीतिक संदेश?
हर सार्वजनिक बयान असल गुस्सा या नाराज़गी का संकेत नहीं होता —
कभी-कभी यह एक “संदेश देने” की रणनीति होती है।
लेकिन जब किसी देश के तीन शीर्ष राजनयिक मिलकर
एक ऐसा लेख लिखें जो विश्व राजनीति को प्रभावित करने वाले नेता की यात्रा से पहले आए,
तो उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
भारत का कड़ा बयान दिखाता है कि उसने इस “टाइमिंग” को
जानबूझकर किया गया कदम माना है।
आगे क्या असर पड़ सकता है?
- डिप्लोमैटिक स्पष्टीकरण:
MEA को पश्चिमी देशों से अप्रत्यक्ष स्पष्टीकरण मांगना पड़ सकता है। - मीडिया नरेटिव:
देश के भीतर यह मुद्दा गर्म रहेगा —
विशेषकर “विदेश नीति की स्वतंत्रता” बनाम “पश्चिम का दबाव” जैसे विषयों पर। - व्यापार पर सीमित असर:
फिलहाल बड़े आर्थिक परिणाम की उम्मीद नहीं है,
लेकिन पश्चिम कूटनीतिक दबाव बढ़ा सकता है।
भारत में कैसी प्रतिक्रिया?
देश में मिश्रित प्रतिक्रिया है —
- कई लोग इसे पश्चिम की “अनुचित दखलअंदाज़ी” बताते हैं।
- कुछ लोग इसे अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार की दृष्टि से सही मानते हैं।
- तो कुछ इसे “भारत के मध्यस्थ बनने की संभावना” से जोड़ रहे हैं।
पर एक बात साफ है —
भारत रूस के साथ अपने हितों को बनाए रखेगा और पश्चिम के साथ भी संतुलन साधेगा।
आगे क्या देखना चाहिए? (Key Points to Watch)
- क्या मोदी–पुतिन वार्ता से कोई बड़ा डिफेंस या एनर्जी डील सामने आता है?
- क्या पश्चिम भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए नए कदम उठाता है?
- क्या भारत यूक्रेन संकट पर किसी मध्यस्थता की पेशकश करता है?
FAQs: Putin
Q1. यह लेख कहां प्रकाशित हुआ था?
एक प्रमुख राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक में —
और यह संयुक्त रूप से तीन शीर्ष राजनयिकों द्वारा लिखा गया था।
Q2. भारत ने इसे आपत्तिजनक क्यों माना?
क्योंकि यह किसी बड़े राष्ट्राध्यक्ष की यात्रा से पहले प्रकाशित हुआ —
जो कूटनीतिक प्रोटोकॉल के विरुद्ध माना जाता है।
Q3. क्या Putin का दौरा रद्द हो सकता है?
नहीं। दोनों देशों ने दौरे की पुष्टि कर दी है; तैयारी सामान्य रूप से जारी है।
Q4. भारत-रूस संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?
कोई बड़ा नकारात्मक असर नहीं दिखता —
दोनों देश रणनीतिक साझेदारी मजबूत रखना चाहते हैं।
Q5. क्या यह पश्चिम की नाराज़गी का संकेत है?
यह सीधे नाराज़गी से ज़्यादा “राजनीतिक संकेत” माना जा सकता है।
निष्कर्ष: Putin
स्पष्ट है कि जैसे-जैसे Putin की भारत यात्रा पास आ रही है,
वैसे-वैसे पश्चिम की बेचैनी भी सामने आ रही है।
भारत संतुलन की अपनी नीति पर कायम है —
रूस के साथ गहरे संबंध बनाए रखते हुए,
पश्चिम के साथ भी मजबूती से साझेदारी जारी रखना उसका लक्ष्य है।
यह पूरा मामला कूटनीतिक “साउंडिंग” का है —
पक्ष अपनी-अपनी बातों को सार्वजनिक कर रहे हैं,
और दुनिया इसकी बारीकी से निगरानी कर रही है।
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