(Prashant Kishor )बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना जारी है(), लेकिन शुरुआती रुझानों ने ही राजनीतिक माहौल को साफ कर दिया।
एक तरफ़ NDA और RJD गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला दिखा, वहीं दूसरी तरफ़ Prashant Kishor (PK) की
Jan Suraaj Party अपनी पहली चुनावी परीक्षा में पूरी तरह फेल होती दिखाई दी।
243 में से हर सीट पर उम्मीदवार उतारने वाली पार्टी को उम्मीद थी कि लोगों का जनसुराज अभियान को भारी समर्थन मिलेगा,
लेकिन नतीजे इसके बिल्कुल उलट रहे।
जनसुराज पार्टी कई सीटों पर दो-तीन हजार वोट तक भी नहीं जोड़ सकी।
कुछ सीटों पर तो उम्मीदवार पांचवे-छठे नंबर पर खिसक गए।
यह ब्लॉग गहराई से समझने की कोशिश करता है कि आखिर क्यों PK की रणनीति बिहार की ज़मीन पर काम नहीं कर पाई।
इस चुनावी नतीजे ने बिहार की राजनीति में कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं —
क्या सिर्फ़ “संगठन” और “यात्रा” से चुनाव जीता जा सकता है?
क्या PK की रणनीति सिर्फ कागज़ पर ही मजबूत थी?
और क्या जनसुराज का भविष्य अब भी बचा हुआ है?
Prashant Kishor और उनकी राजनीतिक यात्रा
Prashant Kishor का राजनीतिक करियर किसी परिचय का मोहताज नहीं।
उन्होंने देश के कई दिग्गज नेताओं और पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति तैयार की,
जिसमें मोदी, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, जगन रेड्डी जैसी बड़ी हस्तियाँ शामिल हैं।
उनकी पहचान एक successful political strategist की रही है।
पर जब वही PK ग्राउंड पर खुद उतरकर चुनाव लड़ते हैं,
तो तस्वीर बिल्कुल अलग दिखती है।
जनसुराज अभियान की शुरुआत 2022 में हुई थी, जब PK ने राज्यभर में पैदल यात्रा कर लाखों लोगों से मुलाकात की।
यात्रा के दौरान उन्होंने बिहार के सिस्टम की कमियों को उजागर किया और बड़े बदलाव का वादा किया।
लेकिन चुनाव में उतरते ही पता चला कि लोगों का प्यार और वोट दो अलग-अलग चीजें होती हैं।
Jan Suraaj Party ने सभी 243 सीटों पर उतारे उम्मीदवार
PK ने बिहार की हर विधानसभा सीट पर उम्मीदवार उतारकर एक बड़ा जोखिम लिया था।
कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने उसी समय कहा था कि यह निर्णय पार्टी को भारी पड़ सकता है,
क्योंकि किसी भी नई पार्टी के लिए राज्यव्यापी नेटवर्क का बनाना आसान नहीं होता।
कई सीटों पर तो उम्मीदवार अपने बूथ के वोट भी नहीं खींच पाए।
यह बताता है कि पार्टी का ग्राउंड नेटवर्क उतना मजबूत नहीं था जितना बताया जा रहा था।
आखिर PK की रणनीति क्यों फेल हो गई?
1. जमीनी कार्यकर्ताओं की कमी
PK की यात्रा में भीड़ जरूर दिखी, लेकिन चुनावी संगठन खड़ा करने के लिए सिर्फ़ भीड़ काफी नहीं होती।
कई रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया कि जनसुराज कैडर चुनावी प्रबंधन के स्तर पर कमजोर था।
पार्टी को booth-level teams खड़ी करने में सफलता नहीं मिली।
2. जमीनी जातीय समीकरणों की अनदेखी
बिहार चुनाव का 90% खेल caste equation पर टिका होता है।
PK ने इसे नजरअंदाज किया या फिर उसे बदलने की कोशिश की, जो ज़मीन पर सफल ना हो सकी।
3. Too Much Intellectual Messaging
PK की भाषा और मुद्दे कई लोगों को “intellectual politics” जैसे लगे।
ग्रामीण इलाकों में लोग practical problems— सड़क, नौकरी, सुरक्षा— पर वोट देते हैं।
जनसुराज का messaging जनता से उतना connect नहीं कर पाया।
4. Leadership Face का सवाल
PK खुद चुनाव नहीं लड़ रहे थे।
इससे लोगों के मन में यह सवाल था कि अगर पार्टी जीती तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा?
Clear leadership आम लोगों को confidence देती है।
मतगणना में जनसुराज की स्थिति — सीटवार रुझान
रुझान बताते हैं कि कई सीटों पर उम्मीदवार 8–10 हजार वोट भी पार नहीं कर पाए।
कुछ जगह तो 1000–1500 वोट पर ही संघर्ष चल रहा है।
यह तब है जब उनके उम्मीदवारों ने महीनों प्रचार किया था।
नीचे कुछ अनुमानित उदाहरण (कथा शैली में) दिए गए हैं जो रुझानों की झलक दिखाते हैं:
- बक्सर: जनसुराज का उम्मीदवार 6th position पर
- सहरसा: महज 2300 वोट
- दरभंगा: 5th नंबर
- मुजफ्फरपुर: 3000 वोट के आस-पास
- पटना ग्रामीण: लगभग 1500–2000 वोट
यह दिखाता है कि पार्टी को वोट ट्रांसफर और लोकल समर्थन दोनों की कमी महसूस हुई।
लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही?
मतदान के दौरान और बाद में लोगों से बात करने पर एक दिलचस्प बात सामने आई —
लोग Prashant Kishor
को एक “अच्छा इंसान” और “अच्छा सलाहकार” तो मानते हैं,
लेकिन उन्हें “राजनेता” के रूप में स्वीकार करने में झिझक दिखी।
कई लोगों का कहना था:
“Prashant Kishor अच्छे हैं, पर हम उन्हें नेता नहीं मानते। उनका आंदोलन अच्छा है, पर सरकार चलाना बड़ी बात है।”
यह फर्क ही चुनावी नतीजों में दिख गया।
क्या जनसुराज का भविष्य खत्म हो गया?
नहीं — ऐसा बिल्कुल नहीं है।
कोई भी नई पार्टी पहली बार में जीत की उम्मीद नहीं करती,
लेकिन इतनी खराब प्रदर्शन definitely चिंताजनक है।
आगे तीन रास्ते हैं:
- पार्टी को सुधार करना होगा और जमीनी संगठन मजबूत बनाना होगा।
- लोकल issues पर campaign करना होगा, सिर्फ बड़े vision से काम नहीं चलेगा।
- PK को खुद चुनाव लड़कर नेतृत्व देना चाहिए।
अगर PK इन चीजों पर काम करते हैं तो आने वाले चुनावों में पार्टी फिर उभर सकती है।
Bihar Election 2025 ने क्या संदेश दिया?
इस चुनाव ने एक बड़ी बात साबित कर दी —
बिहार में राजनीति का मैदान बहुत कठिन है।
यहां सिर्फ संदेश, यात्रा और बड़े विज़न से चुनाव नहीं जीता जा सकता।
यहां जातीय समीकरण, पुरानी निष्ठा, और लोकल नेतृत्व—
सब कुछ बराबर मायने रखता है।
अगर किसी को बिहार बदलना है, तो उसे जनता के बीच लंबे समय तक मेहनत करनी होगी।

निष्कर्ष (Prashant Kishor )
Prashant Kishor की Jan Suraaj Party की पहली चुनावी परीक्षा उम्मीद के मुताबिक नहीं रही।
243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बावजूद पार्टी जनता से vote convert नहीं करा पाई।
लेकिन यह बिहार की राजनीति की हकीकत है— अचानक कोई नई पार्टी नहीं खड़ी हो जाती।
अगर Prashant Kishor अपने मॉडल को जमीन से जोड़ें, लोकल नेतृत्व तैयार करें,
और खुद चुनाव लड़ें, तो भविष्य में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
अभी के लिए, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का यह नतीजा
Prashant Kishor के लिए एक चेतावनी भी है और अवसर भी।
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