Artificial Rain का तीसरा ट्रायल सफल – IIT कानपुर की रिपोर्ट बताएगी कितना कम हुआ AQI?
नई दिल्ली:
दिल्ली का आसमान अब उम्मीदों की बूंदों से भरने लगा है! जी हां, राजधानी में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) का तीसरा ट्रायल सफल घोषित किया गया है। इस बार न केवल मौसम विज्ञानियों, बल्कि पूरे देश की नज़रें इस प्रयोग पर थीं, क्योंकि दिल्ली की हवा एक बार फिर “खतरनाक स्तर” पर पहुंच चुकी थी।
अब सभी की निगाहें IIT कानपुर की उस रिपोर्ट पर टिकी हैं जो बताएगी कि इस ट्रायल के बाद दिल्ली का AQI कितना कम हुआ और क्या यह तरीका भविष्य में प्रदूषण से लड़ने का “मॉडल सॉल्यूशन” बन सकता है।

कृत्रिम बारिश क्या होती है?
कई लोग अभी भी ये समझ नहीं पाते कि “कृत्रिम बारिश” यानी Artificial Rain होती कैसे है?
दरअसल, ये एक वैज्ञानिक प्रक्रिया (Cloud Seeding) है, जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस जैसे कणों का छिड़काव किया जाता है। ये कण बादलों में नमी को आकर्षित करके बारिश की बूंदों में बदल देते हैं।
सरल शब्दों में — अगर बादल हैं पर बारिश नहीं हो रही, तो विज्ञान की मदद से उनसे जबरदस्ती बारिश करवाई जाती है।
इसे “Weather Modification Technology” भी कहा जाता है।
दिल्ली में प्रदूषण का हाल — क्यों जरूरी हुई Artificial Rain?
दिल्ली हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच गंभीर वायु प्रदूषण का सामना करती है।
इस बार भी AQI लगातार 450 से ऊपर दर्ज किया गया, जो ‘Severe’ कैटेगरी में आता है।
कई इलाकों जैसे आनंद विहार, पंजाबी बाग, और मुंडका में AQI ने 480 तक का स्तर छू लिया था।
मुख्य कारण:
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पराली जलाना (Stubble Burning)
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वाहनों का धुआं
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कंस्ट्रक्शन डस्ट
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सर्दी के कारण हवा का न बैठना (Low Wind Speed)
दिल्ली सरकार ने स्कूल बंद करने, निर्माण कार्य रोकने और ऑड-ईवन की तैयारी जैसे कदम उठाए, लेकिन हालात सुधरे नहीं।
इसीलिए आखिरी उम्मीद बनी — कृत्रिम बारिश।
तीसरे ट्रायल की पूरी डिटेल: कब, कहां और कैसे हुई Artificial Rain?
दिल्ली में यह तीसरा ट्रायल 27 अक्टूबर 2025 को किया गया।
इस बार दिल्ली सरकार, IIT कानपुर और IMD (भारतीय मौसम विभाग) की संयुक्त टीम ने इसे अंजाम दिया।
ट्रायल के लिए दो छोटे विमान (Beechcraft King Air C90) इस्तेमाल किए गए, जिनमें बादलों में स्प्रे करने के लिए विशेष उपकरण लगाए गए थे।
सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड का मिश्रण लगभग 3500 फीट ऊंचाई से छोड़ा गया।
इस प्रक्रिया को उत्तर और पश्चिम दिल्ली के क्षेत्रों — नरेला, बवाना, रोहिणी, और पीतमपुरा में किया गया।
करीब 45 मिनट के भीतर हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गई, जिससे इलाके का AQI कुछ घंटों में 480 से घटकर 350 के आसपास पहुंच गया।
IIT कानपुर की भूमिका: रिपोर्ट क्या बताएगी?
इस पूरे प्रोजेक्ट का वैज्ञानिक नेतृत्व IIT कानपुर के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने किया है।
उनकी टीम ने पहले दो ट्रायल (2023 और 2024) के डाटा का विश्लेषण करके इस बार तकनीक में सुधार किया।
IIT Kanpur अब इस तीसरे ट्रायल के बाद की रिपोर्ट तैयार कर रहा है जिसमें यह शामिल होगा:
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कितनी मात्रा में बारिश हुई
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कितनी देर तक बारिश जारी रही
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हवा में PM2.5 और PM10 में कितनी कमी आई
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AQI में वास्तविक गिरावट का प्रतिशत
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और, यह तकनीक भविष्य में कितनी प्रभावी साबित हो सकती है
प्रोफेसर मनीष कुमार (IIT Kanpur) के अनुसार —
“प्रारंभिक आंकड़े बहुत उत्साहजनक हैं। बारिश के बाद कुछ इलाकों में प्रदूषण में 25–30% तक की कमी दर्ज की गई है। यह भारत में अब तक का सबसे सफल ट्रायल है।”

पहले दो ट्रायल का अनुभव कैसा रहा?
पहला ट्रायल (2023)
पहली बार दिल्ली में Artificial Rain नवंबर 2023 में की गई थी, लेकिन तब बादल पर्याप्त नहीं थे।
नतीजा — बहुत हल्की बूंदाबांदी हुई, जिससे हवा पर खास असर नहीं पड़ा।
दूसरा ट्रायल (2024)
दूसरे ट्रायल में IIT Kanpur ने टेक्निक में सुधार किया।
बादल घने थे, और उस बार बारिश 20 मिनट चली। AQI में लगभग 15% सुधार देखा गया।
परंतु उस वक्त डेटा इकट्ठा करने में तकनीकी दिक्कतें आईं।
तीसरा ट्रायल (2025)
इस बार बादल और मौसम दोनों अनुकूल थे। टीम ने Real-time sensors से AQI मापा और सैटेलाइट डेटा से परिणाम की पुष्टि की।
नतीजा – अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन।
टेक्नोलॉजी के पीछे की साइंस
IIT Kanpur के वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होंने इस बार “Dual Cloud Seeding Technique” अपनाई।
मतलब — एक साथ दो स्तरों पर कण छोड़े गए ताकि बारिश तेजी से शुरू हो सके।
साथ ही, पहली बार ड्रोन-बेस्ड मॉनिटरिंग सिस्टम लगाया गया, जिससे डेटा को रियल टाइम में रिकॉर्ड किया गया।
इस तकनीक का खर्च लगभग ₹2 करोड़ प्रति ट्रायल बताया जा रहा है।
चुनौतियाँ और सीमाएँ
कृत्रिम बारिश भले ही कारगर दिख रही हो, लेकिन इसके कई प्रैक्टिकल चैलेंज भी हैं:
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बादल होना जरूरी है — बिना बादलों के Cloud Seeding असंभव है।
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बारिश का एरिया सीमित रहता है।
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प्रभाव अस्थायी होता है, 2–3 दिनों से ज्यादा AQI में सुधार नहीं रहता।
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Chemical usage को लेकर Environmentalists चिंतित हैं।
Center for Science & Environment (CSE) की रिपोर्ट कहती है —
“Cloud seeding सिर्फ emergency समाधान है, न कि long-term pollution control policy।”
दिल्ली सरकार की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर लिखा:
“दिल्ली में कृत्रिम बारिश का तीसरा प्रयास सफल रहा। IIT Kanpur और हमारी पूरी टीम को बधाई। यह तकनीक आने वाले सालों में दिल्ली की हवा बदल सकती है।”
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा —
“अगर IIT Kanpur की रिपोर्ट सकारात्मक रही, तो दिसंबर से नियमित रूप से Cloud Seeding Program शुरू किया जाएगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार केंद्र से राष्ट्रीय स्तर पर Cloud Seeding Mission की मांग करेगी।
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विरेंद्र सचदेवा ने कहा —
“कृत्रिम बारिश सिर्फ दिखावा है। दिल्ली सरकार को उद्योगों और डीजल जेनरेटर पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।”
वहीं कांग्रेस ने कहा कि ये प्रयोग अच्छा है, लेकिन स्थायी समाधान नहीं।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी चेतावनी दी है कि
“बिना स्पष्ट पर्यावरणीय मूल्यांकन के, Chemical Cloud Seeding से दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है।”
दिल्लीवासियों की राय: राहत या दिखावा?
लोगों की राय भी दो हिस्सों में बंटी दिखी।
साकेत की रहने वाली रिया शर्मा कहती हैं —
“बारिश के बाद पहली बार खुलकर सांस ली। घर के बच्चों को भी बाहर खेलने दिया।”
वहीं रोहिणी के दीपक वर्मा का कहना है —
“अगर ये Technology इतनी महंगी है तो इससे अच्छा पेड़ लगाए जाएं। ये कुछ दिन की राहत है, स्थायी समाधान नहीं।”
सोशल मीडिया पर #ArtificialRainDelhi और #IITKanpurExperiment ट्रेंड कर रहे हैं।
मीम्स, रील्स और डिबेट्स से ट्विटर भर गया है।

क्या दिल्ली मॉडल दूसरे शहरों में भी लागू होगा?
IIT Kanpur की रिपोर्ट के बाद अगर परिणाम सकारात्मक रहते हैं, तो केंद्र सरकार इसे मुंबई, पटना, लखनऊ और हैदराबाद जैसे शहरों में भी लागू करने की योजना बना रही है।
पर्यावरण मंत्रालय ने संकेत दिया है कि इसे “National Clean Air Mission (NCAP)” का हिस्सा बनाया जा सकता है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सीमा अग्रवाल कहती हैं —
“कृत्रिम बारिश एक तात्कालिक समाधान है, लेकिन यह जनस्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए जरूरी कदम है। अगर वैज्ञानिक रूप से किया जाए, तो इसके लाभ नुकसान से कहीं ज्यादा हैं।”
IIT Kanpur के डॉ. आर.के. मिश्रा के अनुसार —
“हमें लगातार डेटा इकट्ठा कर मॉडलों को सुधारना होगा।
अगर मौसम अनुकूल रहा, तो 2026 में दिल्ली के लिए ‘Pre-monsoon Artificial Rain Program’ शुरू किया जा सकता है।”
लॉन्ग-टर्म सॉल्यूशन क्या है?
कृत्रिम बारिश सिर्फ एक इमरजेंसी टूल है।
दिल्ली को स्थायी समाधान चाहिए:
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हर साल कम से कम 50 लाख नए पेड़ लगाना
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ग्रीन बिल्डिंग कोड्स लागू करना
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EV नीति को सख्ती से अपनाना
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पराली प्रबंधन के लिए पंजाब-हरियाणा समन्वय नीति बनाना
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Dust Control टॉवर और Fog Guns की नियमित निगरानी
निष्कर्ष: दिल्ली कृत्रिम बारिश का भविष्य
तीसरे ट्रायल की सफलता ने उम्मीदें जरूर बढ़ाई हैं।
अगर IIT Kanpur की रिपोर्ट पुष्टि करती है कि AQI में 25–30% तक कमी आई है, तो यह भारत में पर्यावरण विज्ञान का ऐतिहासिक अध्याय होगा।
फिलहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि —
“विज्ञान ने फिर से साबित किया कि अगर इरादा साफ हो, तो आसमान भी झुक सकता है!”
अब देखना होगा कि यह प्रयोग दिल्ली को सिर्फ कुछ दिनों की राहत देता है या स्थायी हवा सुधार योजना की दिशा में पहला कदम बनता है।
FAQ – दिल्ली कृत्रिम बारिश से जुड़े प्रमुख सवाल
Q1. दिल्ली में कृत्रिम बारिश कब की गई?
👉 तीसरा ट्रायल 27 अक्टूबर 2025 को IIT कानपुर और दिल्ली सरकार के सहयोग से किया गया।
Q2. इससे AQI में कितना सुधार हुआ?
👉 प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ इलाकों में AQI में 25–30% की गिरावट आई है।
Q3. क्या यह तकनीक पूरे भारत में लागू होगी?
👉 अगर IIT Kanpur की रिपोर्ट सकारात्मक रही, तो इसे अन्य प्रदूषित शहरों में भी अपनाया जा सकता है।
Q4. क्या Artificial Rain खतरनाक है?
👉 नहीं, सामान्य तौर पर सुरक्षित है। लेकिन सिल्वर आयोडाइड के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरणीय असर पर अध्ययन जारी है।
Q5. क्या इससे स्थायी समाधान मिलेगा?
👉 नहीं, यह अस्थायी राहत है। स्थायी समाधान पेड़ लगाना, वाहनों का नियंत्रण और औद्योगिक प्रदूषण पर रोक है।
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